आज तुम्हारा पैगाम बारिश बन
उतर आया मेरे आँगन में
और तुम्हारा प्रेम से भरा संदेश
भिंगो गया मेरे मन को ।
बादलों के संग बहता यह पैगाम
निकला था तुम्हारे ख़त से
जो रोज़ तुम मेरे नाम लिखा करती थी
और अश्कों से भिंगो अपने सिरहाने रखा करती थी।
जब सिली हवा छूती उस ख़त को
तुम बेचैन हो पीछे जाती थी
और उसे पकड़
शर्मा कर लिपट जाती थी।
आज वह पैगाम बादलों के संग पहुँच
गया मेरे आँगन तक
और भिंगो गया मेरे मन को
निश्छल प्रेम की बारिश से।
Tuesday, February 24, 2009
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2 comments:
Its beautiful
though my hindi is not so good
poetry can bridge the gap of language
keep it up
very beautiful poem...
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