Friday, May 30, 2008

मेरी सोच

मैंने जो कुछ सोचा तो
ख्वाब फिर सजने लगे ,
हवाएं तो फिर भी चल रही थी
खुशबूएं अब बहने लगी ।

मेरी सोच ने जीवन को
जीने की एक वजह दी,
यूं तो फिर भी जी रहा था मैं
पर इसने मुझे किसी के लिए मरने की एक वजह दी।

शायद मेरी सोच मेरे जीवन की राह है
कभी ना मिटने वाली मेरी चाह है,
ये मेरी सोच मेरे ख्वाब बनाते हैं
रातों को नींद में मुझे हँसना सीखाते हैं।

मेरी सोच मेरे कर्म की मोहताज है शायद
आवारा सड़कों पर घूमते हुए कभी साथ छोड़ देती है
कभी पास में खिले फूल की महक लेते हुए
मेरे दरीचे से सहमी हुई चली आती है ।





1 comment:

vikash said...

gud one..gajju...acha hai jitne fundae maarne hai yahi maar lo...bit me kam se kam chup rahoge... hame shaanti milegi...