ज़िन्दगी लम्हों का एक गुलदस्ता
गुजरता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता
कह रहा है हमसे,
लड़ ले आज हर ग़म से.
कल सुबह होगी
और लालिमा तिलक लगायेगी
उस भाल पर
जो स्थिर हो रात बिताएगी.
जो शशि का आलिंगन कर
निशा की गोद में
पल-पल बिखर कर भी
सदा बीते लम्हों को याद कर मुस्कुराएगी.