Sunday, April 12, 2009

लम्हों का गुलदस्ता


ज़िन्दगी लम्हों का एक गुलदस्ता
गुजरता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता 
कह रहा है हमसे,
लड़ ले आज हर ग़म से.

कल सुबह होगी
और लालिमा तिलक लगायेगी
उस भाल पर 
जो स्थिर हो रात बिताएगी.

जो शशि का आलिंगन कर
निशा की गोद में
पल-पल बिखर कर भी
सदा बीते लम्हों को याद कर मुस्कुराएगी.